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________________ नईसवाँ प्रश्न । रस प्रश्न रासम्बन्ध विजानीय विचार अधि। बिजानी र विग्राह प विषय में रनमालिमा ना चल है कि पत्र जो कुछ लिखा जाय बदम पिपयग होगा। आक्षेप (4)-मामय पहने है कि जानियाँ यादि है । (श्रीलाल विद्यानन्द) समाधान-जातियाँ दा नाद भी है-मलिरन, अकल्पिन । पन्द्रिय प्रादि शास्पिन जानियाँ इ । बाकी ब्राह्मण क्षप्रियाः कल्पिन तानिगं है। पन्द्रिय शादि अकल्पित नानि अनादि है। करिग्न जानियां अनादि नहीं है अन्यथा इनको रचना ऋषमदेव ने की या भग्न नकीयह बात शास्त्रों में क्यों निग्नी होती ? अाप (ग्न नामजन्द्र मिदान्तवनानी ने १२ बरय जातियाँ कही है। (श्रीलाल ) ममाधान-यातेवक अगर किसी पाठशाला म जाकर गोम्मटमार पढले ना वह नेमिचन्द्रका नमकने लगेगा। नमि. चन्द्र ने मिर्फ पॉत्र ही जातियों का उलंन किया। १२ खग्य जातियों का उल्लेख बनाने के लिये हम श्रानेएक को चुनौती देने है । ३२ लन्न कोटी कुलों का उल्लग्न नेमिचन्द्र ने ज़रूर किया है परन्तु उन कुलों को जानि समझ लेना घोर मूर्खता का परिचय देना है। गोम्मटमार टीका में ही कुल भेटी का अर्थ शरीगन्पादक वर्गणाप्रकार किया गया है । अर्थात् शरीर बनने के लिये जितनी तरह की वर्गणाएं लगती है उतने ही कुल है । एक हो योनिसे पैदा होने वाले शार्गगें कुल लाखों होते हैं क्योंकि योनिभेडसे कुलके भेट लाग्दो गुणे हे और एक ही जानि-में चाहे वह कल्पिन हा या अकल्पित-लाखों
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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