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________________ (१६) से विवाही गई । विवाह के योग्य उमर हो जाने पर इच्छित वर के न मिलने से इन्हें वाट देखते रुकना पड़ा। लडासन्दरी-हनुमान के साथ इमने घोर युद्ध किया। पमपुराण के ५३ पर्व में उमका चरित्र पढ़ने में इसकी प्रोढता का पता लगता है। पुराणों में ऐसे सैकड़ों उल्लेख मिलते है जिनमे चुवनी. विवाह का पूर्ण समर्थन हाता है। कन्याएँ कार्ड प्रनिशा कर लेती या किसी ख़ास पुरुष को चुन लेती जिसके कारण उन्हें वर्षों बाट देखनी पडती थी । ऐसी अवस्था में १२ वर्ष की उमर का नियम नहीं हो सकता। कन्याओं के जैसे वर्णन मिलते है उनसे भी उनके यौवन और परिपक्वबुद्धिता का परिचय मिलता है जा १२ वर्ष की उमर में असम्भव है। इन उदाहरणों से यह वान भी सिद्ध हो जाती है कि पुगने समय में कन्या को स्वतन्त्रता थी और उन्हें पति पसंद करने का अधिकार था । उस स्वतन्त्रता और पसन्दगी का विगंध करने वाले शास्त्रविराधी और धर्मलोपी है। आक्षेप (घ)-यदि ब्रह्मचर्य की इतनी हिमायत करमा है ना विधवा के लिये ब्रह्मचर्य का ही विधान क्यों नहीं बनाया जाता? समाधान-चाहे कुमारियाँ हो या विधवाएँ हो हम दोनों के लिये वलाद् ब्रह्मचर्य और बलाविवाह बुरा समझते है। जो विधवाएँ ब्रह्मचर्य से रहना चाह, रहे । जो विवाह करना चाहे, विवाह करें। कुमारियों के लिये भी हमारा यही कहना है । कुमारी और विधवा जय तक ब्रह्मचर्य से रहेंगी नव नक पुण्यबन्ध होगा। आक्षेप (ङ)- जो लोग यह कहते है कि जितना ब्रह्मचर्य पल सके उतना ही अच्छा है वे ब्रह्मचर्य का अर्थ हो
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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