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________________ ( १८४) कम उमर के विधान है। अन्यथा १६ वर्ष से अधिक उमर के कुमार का विवाह भी पाप होना चाहिये । ऐसी तुच्छ और ब्रह्मचर्चविरुद्ध प्रामात्रओं को जिनेन्द्र की प्रामा बतलाना जिनन्द्रका अवर्णवाद करना है। आक्षेप (ग)-जो ब्रह्मचर्य भी न ले और संस्कार भी समय पर न करे वह अवश्य पापी है । बाह्मी आदिने तो जीवन भर विवाह नहीं किया इसलिये उन का ब्रह्मचर्य पाप नहीं है। (श्रीलाल) समाधान-संस्कार, बूतादि की योग्यता प्राप्त कगने लिये है। जब मनुष्य पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकता तब अांशिक व्रह्मचर्य के पालन कगने के लिये विवाहकी श्राव. श्यकता होती है। विवाह सम्झार पूर्णब्रह्मचर्य की योग्यता प्राप्त नहीं कराता इसलिये जबतक कोई पूर्णब्रह्मचर्य पालन करना चाहता है तबतक उसे विवाह संस्कार की आवश्यकता नहीं है। शास्त्रों में ऐसी सैकडॉ कुमारियों के उल्लेख है जिनने वडी उमर में, युवती हो जाने पर विवाह किया है। विशल्या-विवाह के समय 'शातोढरी दिग्गजकुम्भशो. भिस्तनद्वयानूतनयौवनस्था' अर्थात् गजकुम्भके समान स्तनवाली थी। पद्मपुराण ६५-७४।। जयचन्द्रा-सूर्यपुरके राजा शक्रधनुकी पुत्री जयचन्द्रा को अपने आप और गुणों का वडा घमण्ड था। इसलिये पिता के कहने पर भी उस ने किसी के साथ शादी न कराई । अन्त में वह हरिषेण के ऊपर रीझी और अपनी सखोके द्वारा सोतं समय हरिषेण का हरण करा लिया। फिर हरिषेण से विवाह कराया । वैवाहिक खातव्य और उमर के बन्धन को न मानने का यह अच्छा उदाहरण है । पद्मपुराण - पर्व ।
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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