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________________ ( १७२) और भाई को छोड कर दुनिया में और कोई पुरुष न मिलेगा और पुरुषों को मॉ वहिन छोडकर और काई स्त्री न मिलेगी, । भाई बहिन में और माँ बेटे में गुप्त व्यभिचार की मात्रा चढ जावेगी,भ्रूणहत्याएँ हाने लगेंगी, उनकी कामवामना को सीमित करने के लिये और कोई स्थान न रहेगा, उस दिन माँ बेटे और बहिन भाई के विवाह की समस्या पर विचार किया जा सकता है । आक्षेपक विधवाविवाह से बढ़ने वाली सख्या के ऊपर मॉ बहिन के साथ शादी करने की बात कह कर जिस घार निर्लजता का परिचय दे रहा है, क्या यह परिचय विधुरविर्गह के विषय में नहीं दिया जासकता ? सन्तान के बहाने से अपना पुनर्विवाह करने वाले विधुर, अपनी माँ बहिन से शादियाँ क्यों नहीं करते ? जो उत्तर विधुविवाह के लिये है वही उत्तर विधवाविवाह के लिये है। इस प्रश्न में यह आक्षेपक अन्य प्रश्नों से अधिक लड. खडाया है, इसलिये कुछ भी न लिखकर यह असभ्य कथन तथा लेंडरा आदि शब्दों का प्रयोग किया है। आक्षेप-(ख) अठारहवे प्रश्न में आपने कहा था कि प्रतिवर्ष जैनियों की संख्या ७ हजार घट रही है। अब कहते हैं कि बढ़ रही है। ऐसे हग्जाई (रिपाई) का हम विचार नहीं करते । (विद्यानन्द) समाधान-आपके विश्वास न करने से रिपोर्ट को उपयोगिता नष्ट नहीं होती, न वस्तुस्थिति बदल जाती है। पशु के आँख मींचने से शिकारी का अस्तित्व नहीं मिट जाता। जैनियों की जनसख्या प्रतिवर्प सात हजार घट रही है परन्तु इसको यह मतलब नहीं है कि जैनियों के किसी घर में जन. सख्या बढ़ती नहीं है । ऐसे भी घर हैं जिनमें दा से दस श्रादमी हो गये होंगे परन्तु वे घर कई गुणे है जिनमें दस से
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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