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________________ (१६२) विवाह नहीं करते वे ही प्रशसनीय हैं चाहे वे विधुर हो या विधवा। आक्षेप (ख)-पुनर्विवाह वाली जातियों में वैधव्य शोभा का कारण है। क्या इससे सिद्ध नहीं होना कि पुनर्विवाह न करने वाली शोभा का कारण और करने वाली अशाभा का कारण है, ? (विद्यानन्द) समाधान-उपवास और भूखे मरने का वाह्यरूप एकसा मालूम होता है, परन्तु दोनों में महान् अन्तर हैं । उपवाम स्वेच्छापूर्वक है, इसलिये त्याग है, तप है । भूखों मरना. विवशता से है इसलिये वह नारको नोखा सक्लेश है। एक समाज ऐसी हैं जहाँ खान की स्वतन्त्रता है। एक ऐसी है जहाँ सभी को भूखों मरना पड़ता है । पहिलो समाज में जो उप वास करते हैं वे प्रशमनीय होते हैं, परन्तु इमीलिये भूखों मरने वाली समाज प्रशमनीय नहीं कही जासकती, फिर ऐसी हालत में जव कि भूखों मरने वाले चुग चुग कर खाते हो। पुनर्विवाह करने वाली जातिमें वैधव्य प्रशंसनीय है क्योंकि उस में प्राप्य भागोंका त्याग किया जाना है. पुनर्विवाहशुन्य समाज में ऐमी चीज़ों का त्याग कहा जाता है जा अप्राप्य हैं। तब तो गधे के सींग का त्यागी भी वडा त्यागी कहा जायगा । जिन जातियों में पुनर्विवाह नहीं होना उनकी सभी स्त्रियाँ (भले ही वे विधवा हो) पुनर्विवाह कराने वाली स्त्रियों से नीची हैं क्योंकि नपुसक के वाह्य ब्रह्मचर्य के समान उनके वैधव्य का काई मूल्य नहीं है। सारांश यह कि पुनर्विवाह वाली जातियों की विधवाओं का स्थान पहिला हैं (उपवासी के समान); पनर्विवाहिताओं का स्थान दूसग है ( सयताहारी के समान) पुनर्विवाहशून्य जाति की विधवाओं का स्थान तीसरा है (भूतों मरने वालों के समान)।
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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