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________________ ( १६०) सकता है। हमाग कहना तो यह है कि वैधव्य उसका बाधक नहीं है। सोलहवाँ प्रश्न "जिसका गर्भाशय गर्भधारण के योग्य नहीं हुआ उम को गर्भ रह जाने से प्रायः मृत्यु का कारण होजाता है या नहीं ?" इस प्रश्न के उत्तर में वैद्यक शास्त्र के अनुसार उत्तर दिया गया था। पाक्षेपकों को भी यह बात मंजूर है । परन्तु उसके लिये १६ वर्ष की अवस्था की बात नहीं कहते । आक्षेपकों ने इसपर ज़ोर नहीं दिया। हम अपने मूल लेख में जो कुछ लिख चुके है उससे ज्यादा लिखने की जरूरत नहीं है। आक्षेप (क)-सन्तानोत्पादन के लिये हरपुष्टना की । आवश्यकता है, उमर की नहीं। (श्रीलाल, विद्यानन्द) समाधान-सन्तानोत्पादन के लिये हरपुस्ताकी आव. श्यकता है और हण्पुरता के लिये उमर की श्रावश्यकता है। हॉ, यह बात ठीक है कि उमर के साथ अन्य कारण भी चाहिये। जिनके अन्य कारण बहुत प्रबल हो जाते हैं उनके एक दो वर्ष पहिले भी गर्भ रह जाता है, परन्तु इससे उमर का बन्धन अनावश्यक नहीं होना, क्योंकि ऐसी घटनाएँ लाख में एकाध ही होती है। श्रीलाल स्वीकार करते है कि कई लोग २०-२४ वर्ष तक भी सन्तानोत्पत्ति के योग्य नहीं होते । यदि यह ठीक है तो श्रीलाल को स्वीकार करना चाहिये कि १२ वर्ष की उमर में विवाह का नियम बनाना या रजस्वला होने के पहिले विवाह कर देना अनुचित है । यदि विवाह और सन्तानोत्पा. दन के लिये हृष्टपुटता का नियम रक्खा जाय तव १२ वर्ष का नियम टूट जाता है और बालविवाह मृत्यु का कारण है यह बात सिद्ध हो जाती है।
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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