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________________ ( १९६) देना, किन्तु कामलालमा की निवृत्ति पर जोर देता है। पूर्ण निवृत्ति में असमर्थ होने पर प्रांशिक निवृत्ति के नियं विवाह है । उलम सन्तान प्रादि को भी पूर्ति हो जाती है । परन्तु मुख्य उद्देश्य नी कामवासना की निवृत्ति ही रहा । अमृतचंद्र क पद्याने गह विषय बिलकुल स्पष्ट कर दिया है। फिर भी श्राप को पद्यों की उपयोगिता समझ में नहीं पानी । ठीक है, समझने की अम्ल मी तो चाहिये । आक्षेप (घ)-विवाहको गृहम्पाश्रमका मूल कर धर्म, अर्थ, काम रूप नो नियत कर दिया, परन्तु इसमे श्राप हा शप्पड खाली । जय काम गृहस्थाश्रम रूप है नय उम की शान्ति क्णे? पाम शान्ति स नो गृहस्थाश्रम उढना है । काम निवृत्ति धर्म ग्रोर प्रवृत्तिको काम कहना कैसा? पविषय में यह कल्पना क्या? और अर्थ इम का माधक क्या ? फल नां विवाह के तीन है, उनटा अर्थ मायक्ष क्या पहा? माध्य को सायक यनाटिया? (श्रीलाल) समाधान-यहाँ नो श्रापक बिलकुल एकावरका हो गया है। इसलिये हमारे न कहने पर भी उमने काम को गृहम्याश्रमकप समझ लिया है। काम को पूर्णरूप में शान्ति हो जाय ना गृहम्याश्रम उह जायगा और मुनियाधम पाजायगा। अगर काम की निवृत्ति जग भी न हो नां भी गृहस्थाश्रम उड जायगा, क्योति प्रेमी हालन में वहाँ व्यभिचारादि दोषों का दोग्दोग हो जायगा । अगर काम की आंशिक नियत्ति हो अर्थात् पादार विषयक काम की, निवृत्तिरुप म्यहार मन्नाप हो ना गृहस्थाश्रम बना रहता है। श्रापक पेमा जड्युदिका धानेपकने पेने ही कटक और एक वचनात्म शब्दों का जहाँ नहाँ प्रयोग किया है। इसलिये हमें भी "शटम् प्रति
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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