SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११७ ) विवाह करना गजवार्तिक के लक्षण के अनुसार विवाह ही नहीं कहला मकता । जैसे ज्वर न होने पर घर की औषधि देना हानिकारक है, उसी प्रकार काम वासनाके बिना उसका विवाह कर देना हानिकारक है । उस से नो नत्रीन कामज्वर पैदा हो जायगा। खैर, अगर १६ वर्ष के यवा में कामवासना नहीं है तो क्या २०-३० वर्ष के उस विधुर में भी नहीं है, जा विवाह के लिये अपनी सारी शकि लगा रहा है ? विवाह के होजाने पर यह थोड़ी बहुत निश्चिन्तना का अनुभव करता है या नहीं? यही निश्चिन्तना ना सक्लेश परिणामोंकी न्यूनता है। जिम प्रकार विधुरविवाहसे मंजेश परिणामों में न्यूनता होनी है उस प्रकार विधवाविवाहसे भी मक्कैश परिणामों में न्यूनता होनी है, इसलिये विधवाविवाह गे विधेय है । आक्षेप (ख)-जिन पुरुपों के सर्वशा विवाह होने की श्राशा नहीं है, उन का काम नष्ट जैसा होजाना है। उन की इच्छा भी नहीं होनी । जैसे किसी ने बालू खाना छाड दिया नो उनका मन पालुप्रों पर नहीं चलना । गत्रिमें जलत्यागियों को प्यास नहीं लगती । पुनः पुनः काम न सेवन करने स काम नए हो जाता है । जिम विधवा का पुरुषमा की आशा नहीं हानी, उसका मन विकृन नहीं होता। समाधान--पाक्षेप क्या है, पागल के प्रलाप है। नपु. मक को विवाह और कामभांगकी पाशा तो नहीं होती परन्तु उसकी कामवेदना को शास्त्रकारों ने सब से अधिक तीव्र बनलाया है। यदि साधन न मिलने से यह्मचर्य होने लगता नी विधुर और विधवाओं में व्यभिचार क्या होता ? आलू बाह देना एक बात है और भालू न मिलना दूसरी बात है । बृह्म चर्य एक बात है और दुर्भाग्यवश विधवा या विधुर हो जाना, मरी यान है । रात्रि में जलत्यागियों को प्यास नहीं लगती,
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy