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________________ (१०८) उमे वही अणुवन की सीमा है। एक पति या अनेक पति का प्रश्न सामाजिक या राजकीय परिस्थिति का प्रश्न है न कि धार्मिक प्रश्न। ऊपर, निच्चन का उदाहरण देकर बहुपतित्व का उल्लेख कर चुका है। और भी अनेक छाटी छोटी जातियों में यह रिवाज है । अगर ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाय तो एक दिन ससार के अधिकांश देशों में बहुपतित्व की प्रथा प्रचलित थी। बात यह है कि माता का महत्व पिना से अधिक है। माना को ही लेकर कुटुम्ब की रचना होनी है। इसलिये एक समय मातृवश अर्थात् माना के ही शासन की विधि प्रचलिन थी। उस ममय बहुपनिविवाह अर्थात् एक स्त्री के कई पति होने की प्रथा भी शुरू हो गई । एशिया की कुछ प्राचीन जातियों में अब भी इस प्रथा के चिन्ह पाये जाते हैं। कई पतियों में से जो सबसे बलवान और रक्षा करने में समर्थ होता था धीरे धीरे उसका श्रादर अधिक होने लगा अर्थात् पट्टरानी के समान पट्टपति का रिवाज चला। जो बलवान और पत्नी का ज़्यादा प्यारा होना था वही अच्छी तरह घरमै रह पाना था। यही रिवाज अगरेज़ो के हसवेड Husband शब्द का मूल है। इस शब्द का असली रूप हैं Hus buandi अर्थात् घर में रहने वाला। सब पतियों में जो पत्नी के साथ घर पर रहता था वही धीरे धीरे गृहपति या हसबैंड कहलाने लगा, और शक्ति होने स धीरे धीरे घर का पूर्ग प्राधिपत्य उस के हाथ में आगया । घर की मालिकी के बाद जब किसी पुरुष को जानि की सरदारी मिली तो पुरुषों का शासन शुरू हुआ, और बहुपतित्व के स्थान पर बहुपत्नीत्व की प्रथा चल पडी। हिन्दु शास्त्रों में द्रौपदी को पॉच पति वाली कहाँ है और उसे महासती भी माना है । मले ही यह कथा कल्पित
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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