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________________ ( ६२ ) चाहिये। क्योंकि जब पाप है तो 'सर्व ही पापी हूँ । व्यभिचार में तो श्राप सर्व ही पापी वनलावे श्रीर पुनविवाह में विधुविवाह को धर्म बतलावे और विधवाविवाह को पाप, यह कहाँ का न्याय है ? 1 आक्षेप (ज) र चोरी करता है । गवर्नमेन्ट दगड देती है इसमें गवर्नमेन्ट का क्या अपराध ? ( श्रीमान ) समाधान वर्नमेन्ट ने अर्थोपार्जन का अधिकार नहीं छीना है । व्यापार से श्रीर नौकरी या मिक्षा से मनुष्य अपना पेट भर सकता है । गवर्नमेन्ट अगर अर्थोपार्जन के रास्ते तो अवश्य ही उसे चोरी का पाप लगेगा | विधवाविवाह के विरोधी, विधवा को पति प्राप्त करने के मार्ग के विरोधी हैं, इसलिये उन्हें व्यभिचार या नृणहत्या का पाप अवश्य लगता है । यदि स्थितिपालक लोग बनलावे कि अमुक उपाय से विधवा पनि प्राप्त करले और वह उपाय सुसाध्य हो, फिर भी कोई व्यभिचार करे तो अवश्य स्थितिपालकों को वह पाप न लगेगा | परन्तु जब ये लोग किसी भी तरह से पति प्राप्त नहीं करने देते तो इससे सिद्ध है कि ये लोग भ्रूणहत्या और व्यभिचार के पोषक हैं। अगर कोई लग्कार व्यापार न करने दे. नौकरी न करने दे, भीख न माँगने दे और फिर कहे कि - "तुम चोरी भी मत करो, उपवास करके ही जीवन निकाल ढो" तो प्रत्येक आदमी कहेगा कि यह सरकार बदमाश है, इसकी मन्शा चोरी कराने की है। ऐसी ही बदमाश सरकार के समान श्राजकल की पचायते तथा स्थितिपालक लोग हैं । इसमें इतनी बात और विचारना चाहिये कि अगर कोई सर कार चोरी की अपेक्षा व्यापारादि करने में ज्याद दण्ड दे तो उस सरकार की बदमाशी बिल्कुल नंगी हो जायगी। उसी प्रकार स्थितिपालकों की चालाकी भी नंगी हो जाती है. --
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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