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________________ - ७६ - (१) छप्पंचाधियवीसं वारसकुल कोडिसद सहस्साई। सुरणेरइयणराणं हाकम होति णेयाणि ।। (श्री गोम्मटसार जीवकांड गाथा ११६) भावार्थ- देवों के छह ग्वरब, नारकियों के बीस खरब और मनुष्यों के बारह खरब कुल होते हैं। ___ यहां मनुष्यों के जो बारह खरब कुल बतलाये हैं तो 'कुल' से क्या अभिप्राय निकाला जायगा ? भगवान आदिनाथ महाराज को जिनको वृषभनाथ भगवान् भी कहते हैं । वे तीर्थकर और कुलकर भी है। यहां 'कुलकर' का क्या अभिप्राय लिया जायगा यथा वृषभस्तीर्थकृन्चैव कुलकृच्चैव संमतः । भरतश्चमभृच्चैव कुलधृच्चैव वर्णितः ।। (महापुराण तीसरा पर्व २१३ श्लोक) श्री हरिवश पुराण में गणधर भगवान् का श्रेणिक राजा से वार्तालाप करते समय का वर्णन है जिसमें वशोत्पनि बतलाई है। भगवान आदिनाथ स्वयं इक्ष्वाकु नगरीय थे। इक्ष्वाकु प्रथमं प्रधानमदगादादियशस्तत्तः तस्मादेव च सामवश इति यस्यन्य कुरूपादयः।
SR No.010348
Book TitleJain Dharm aur Jatibhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndralal Shastri
PublisherMishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh
Publication Year
Total Pages95
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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