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________________ श्री १०८ श्री माधवसिंह के अनेक भोगपत्नियां थी और उनसे अनेक संतानें थी परन्तु उनमें से किसी को भी राज्याधिकार प्राप्त न होसका और उन्हें अपनी धर्मपत्नियों से पुत्र न होने पर ईसरदा से दत्तक पुत्र ही लाना पड़ा जो कि वर्तमान में जयपुर नरेश और राजस्थान के राजप्रमुख हैं। ब्रामणादि वर्ण में जो दक्सा दरोगा आदि जातियां बनती हैं वे भोगपत्नी से उत्पन्न सततियों की ही जातियां हैं । माता नीच जाति की होने पर उससे जो संतति पैदा हुई उनमें विशुद्ध जातीयता जब नहीं रही तो उनकी जाति के वे नाम घोषित किये गये। वास्तव में 'शूद्रा शूद्रण बोढव्या' आदि श्लोक प्रतिलोम विवाह का ही सूचक है। आदि पुराण के रचियता भगवान् श्री जिनसेन स्वामी एक जगह तो माता पिता की अन्वय शुद्धि वाले को ही सज्जाति बतलावें एवम् 'विवाह जाति संबंध व्यवहारं च तन्मत ' ऐसा प्रतिपादन करें और दूसरी जगह प्रतिलोम विवाह से उपलब्ध स्त्रो को भी धर्मपत्नी मानें, यह पूर्वा पर विरोध नहीं हो सकता । धर्मपत्नी और भोगपत्नी में तथा उनसे उत्पन्न संतानों में जो भेद है वह लाटी सहिता श्रावकाचार के निम्नलिखित प्रमाण से भी स्पष्ट होजाता है और 'शूद्रा शूद्रण बोढव्या' श्लोक प्रतिलोम विवाह से उपलब्ध भोगपत्नी का ही सूचक है यह पर्वथा सुस्पष्ट हो जाता है।
SR No.010348
Book TitleJain Dharm aur Jatibhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndralal Shastri
PublisherMishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh
Publication Year
Total Pages95
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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