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________________ जातीयता की अनादिता अया मति प्राचीनता में और भी अनेक ऐतिहासिक प्रमाण इतिहास की पुस्तकों में भरे पड़े हैं तो भी जाति भेदं के विरोधी जनता को भ्रान्त करने के लिए अनेक प्रकार से उत्तरदायित्वहीन आन्दोलन करते हैं जो देश हित को दृष्टि से बहुत ही चितनीय है। जितना असफल प्रयत्न जाति भेद के नष्ट करने में किया जाता हे उतना यदि अभ्युत्थान के लिए किया जाय तो बड़ा भारी हित हो सकता है। १-जातीय लोगों में प्रविष्ट दोषों को जाति बंधन की दृढ़ता से दूर किया जा सकता है । समस्त जातीय नेताओं को ये कड़े आदेश दिये जाते है कि अपने २ क्षेत्र में सदाचार की रक्षा के लिए अमुक प्रयत्न किये जाव और उनके प्रतिकूलगामियों को जातीय दण्ड दिये जाव । यदि सरकार ऐसा करे तो उसका शासनव्य बहुत कम होसकता है साथ में चिन्ताऐं भी कम हो सकती है। २-जिस प्रकार आज भी अनेक अग्रवाल, खंडेलवाल, माहेश्ररी, पारीक आदि हाईस्कूलों और कालेजों से सरकार को शिक्षा पर कम ब्यय करना पड़ता है यदि वैसे ही समस्त जातियों के स्कूल अलग अलग बना दिये जावें तो सरकार का जो इतना शिक्षा पर व्यय होता है, न हो और शिक्षा प्रचार भी स्वत एव अनिवार्य हो
SR No.010348
Book TitleJain Dharm aur Jatibhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndralal Shastri
PublisherMishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh
Publication Year
Total Pages95
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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