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________________ ६४ मान लिया जाय कि श्रुति स्मृति युग से ही जाति भेद चला है तो श्रुति स्मृति युग के काल का भी तो निर्णय करना ही पड़ेगा। : mycom वास्तव में देखा जाय तो जाति भेद अनिवार्य और अनादिकालीन हैं । जैन आगम का तो यह नियम है कि तीर्थकर भगवान् क्षत्रिय जाति में ही होते हैं। जब तीर्थ-करत्व श्रनादिकालीन हैं तो क्षत्रिय जाति भी स्वत एव अनादि कालीन सिद्ध हो जाती हैं । भगवान् आदिनाथ स्वामी के पहले भी तो तीर्थंकर हो चुके हैं। तीर्थकर भगवान् अनादिकाल से होते आये हैं और काल क्रमानुसार अनन्त काल तक होते रहेंगे । वैदिक धर्म की दृष्टि से श्रुति स्मृति युग भी बहुत प्राचीन 'है । वैदिक धर्म में श्रुतियों [ वेदों ) को तो अपौरुषेय माना जाता हैं इस दृष्टि से भी श्रुति स्मृति काल का निर्णय अनिश्चित हैं । इसके अतिरिक्त जाति भेद इतना अनिवार्य है कि जो भारत में ही नहीं किन्तु चीन, जापान, मिश्र आदि सभी देशों में था तथा अब भी है । जातीयता को नष्ट कर सबको एकाकार करने के लिए भारत में बौद्ध धर्म ने प्रयत्न किया, परन्तु वह भारत में जहां कि वैज्ञानिकता और तात्विकता का केन्द्र है पनप ही न सका और उसे भारत से बाहर ही भगना पड़ा। बौद्ध धर्म के केन्द्र चीन जापान आदि देश हैं परन्तु बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों के प्रचार और संरक्षण की दृष्टि से वहां बौद्ध धर्म की क्या स्थिति हैं ? वहां के लोग केवल परंपरागत पद्धति से ही अपने को
SR No.010348
Book TitleJain Dharm aur Jatibhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndralal Shastri
PublisherMishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh
Publication Year
Total Pages95
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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