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________________ डालने से उन छोटी जातियों के लक्के जिनमें कि धनिकता और पाकवियादिका प्रभाष है कुकारे रह जायने और उनकी लड़कियों को धनिक लोग लेजायंगे। जब धन और चार्वाक्य हीन नवयुवक कुंवारे रहेंगे तो अनाचार और मालपार की प्रवृत्ति होने लगेगी। राजस्थान की कई रियासतों को मिलाकर एक राजस्थान प्रांत बना दिया गया जिसका परिणाम यह हुमा कि राजस्थान के बड़े बड़े शरः ग्राम जैसे बन गये है। वहां चहल पहल हैं और न कोई विशेषता रही। राजधानी जयपुर में काफी तगी होगई। अन्य रियासतों की गैनक जाती रही और जयपुर की ऐसी स्थिति होगई कि शहर की गलियां और रास्ते सड़ते हैं। रहने को मकानों की तंगी, किराया ज्यादा अर्थात् सर्वत्र ही अशांति फैल गई हैं। जिस प्रकार प्रामों की उन्नति से देश समुन्नत हो सकता है उसी प्रकार अल्य संख्यक जातियों को उमति करने से समाज सुखी होगा, उन्हें मिटाकर नहीं। जातीयता की ऐतिहासिकता।. पाश्चात्यों अथवा पाश्चात्यानुगामी लोगों ने भारतीय प्रधान और आदर्श संस्कृति पर्स जाति व्यवस्था को नष्ट करने के लिए यह कहना और लिखना प्रारम्भ किया कि भारत में जाति भेद पहने नहीं था और श्रुति स्मृतियुग से चला है । इसलिए जातिभेद का मानना अनुपयुक्त है। यदि उन्हीं के कवनामुसार यहमी
SR No.010348
Book TitleJain Dharm aur Jatibhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndralal Shastri
PublisherMishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh
Publication Year
Total Pages95
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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