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________________ राज्य लालसा ही कारण है । यवन नेता मिस्टर जिन्ना यह चाहते थे कि यदि भारत अखण्ड रहा तो मुझे कभी भी पूर्ण शासक बनने का सौभाग्य प्राप्त न होगा इसीलिए मिस्टर जिन्ना ने कांग्रे. सी राजनतिक नेताओं को कुचक्र में लेकर भारत में पृथक् निर्वाचन की नींघ ड ली। भारतीय यवनेतर नेता, जिन्ना महोदय की इस कूटनीति को या तो समझ न सके या उनके हृदय में भी यवनों से पीछा छूट जाने पर निष्कंटक राज्य शासन की लालसा थी, उस जाल में फंस गये । यह पृथक् निर्वाचन की दुर्नीति सन् १६१८ में लखनऊ में सफल हुई थी। फिर तो गणित की भूल की तरह एक जगह की हुई भूल हिसाब को सही बैठने ही नहीं देती। उसी भूल का परिणाम अखण्ड भारत का खंडित होना है। जाति भेद को भारत के खंड होने का कारण मानना तत्वज्ञता की कमी है। यदि कांग्रेसी नेता पृथक् निवाचन स्वीकृत नहीं करते तो भारत के बंटवारे की नौबत भी न आती । पृथक् निर्वाचन के बाद भी यदि बंटवारा स्वीकार न करते तो राज्य शासन की मौज से तो उन्हें अवश्य वंचित रहना पड़ता किन्तु करोडों मानवों को संकट का शिकार भी न बनना पड़ता। जाति भेद तो भारत मे सदा से है। अंग्रेजों के पहले भी जाति भेद था। अगर यवनेतर लोग चाहते तो यवनों से उनके शासन काल में भी बंटवारा करा सकते थे परन्तु वे अखण्ड भारत के खंड खंड करना नहीं चाहते थे ! जाति भेद क्या उस समय नहीं था ? जाति भेद मिटाने वाले भी जाति भेद को बहुत प्राचीन मानते हैं और तब का प्राचीन मानते हैं जब
SR No.010348
Book TitleJain Dharm aur Jatibhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndralal Shastri
PublisherMishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh
Publication Year
Total Pages95
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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