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________________ इतिहास कल्चुरी राज्यमें जेनोंके विनाशकी साक्षी देनेवाली इस तरह की कथाएँ और घटनाएँ शैव ग्रन्थों में अनेक मिलती हैं। ७. विजयनगर राज्य इस तरह दक्षिण भारतमें यद्यपि जैनधर्म राजाश्रय विहीन हो गया। फिर भी गुणग्राही राजा लोग जैन गुरुओं, विद्वानों और नेताओंका यथोचित आदर करते थे। ऐसे राजाओंमें विजयनगर साम्राज्यके शासकोंका नाम उल्लेखनीय है। यह राज्य वैदिकधर्मका पोषक था किन्तु इसके राजा विभिन्न मतवालोंके प्रति उदारताका व्यवहार करते थे। तथा इस राज्यके उच्च पदस्थ कर्मचारियोंमें अधिकांश जैनधर्मावलम्बी थे । इसलिये राजाओंको भी जैनधर्मका विशेप ख्याल रखना पड़ता था। हरिहर द्वितीयके सेनापति इरुगप्प कट्टर जैनधर्मानुयायी थे। उन्होंने ५९ वर्ष तक विजयनगर राज्यके ऊँचे पदोंको योग्यतापूर्वक निवाहा और जैनधर्मकी उन्नतिके लिये बराबर प्रयत्न करते रहे । इरुगप्पके अन्य सहयोगियोंने भी जैनधर्मकी पूरी सहायता की और उसके प्रचार में काफी योगदान दिया। विजयनगरकी रानियाँ भी जैनधर्म पालती थीं। श्रवणवेलगोलके एक शिलालेखसे देवराय महाराजकी रानी भीमादेवीका जैन हाना प्रकट ह १३६८ के एक शिलालेखसे पता चलता है कि जैनोंने वुक्काराय प्रथमसे प्रार्थना की कि वैष्णव लोग जैनोंके साथ अन्याय करते हैं । राजाने काफी जाँच पड़तालके बाद जैनों और वैष्णवोंमें मेल करा दिया तथा यह आज्ञा प्रकाशित की "यह जैन दर्शन पहलकी ही भाँति पञ्च महाशद और कलशका अधिकारी है। यदि कोई वैष्णव किसी भी प्रकार जैनियोंको क्षति पहुँचावे तो वैष्णवोंको उसे वैष्णवधर्मकी अति समझना चाहिये । वैष्णव लोग जगह-जगह इस बातकी ताकीदके लिये शासन कायम करें। जब तक सूर्य और चन्द्रका
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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