SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विविध वेदोंका प्रधान विषय देवतास्तुति है, और वे देवता हैं अग्नि, इन्द्र, सूर्य वगैरह । आगे चलकर देवताओंकी संख्यामें वृद्धिह्रास भी होता रहा है । विचारकोंके अनुसार वैदिक आर्योंका यह विश्वास था कि इन्हीं देवताओंके अनुग्रहसे जगत्का सब काम चलता है। इसीसे वे उनकी स्तुति किया करते थे। जब ये आये लोग भारतवर्षमें आये तो अपने साथ उन देवी स्तुतियोंको भी लाये। और जब वे इस नये देशमें अन्य देवताके पूजकोंके परिचयमें आये तो उन्हें अपने गीतोंको संग्रह करनेका उत्साह हुआ । वह संग्रह ही ऋग्वेद' है। __ कहा जाता है कि जब वैदिक आर्य भारतवर्षमें आये तो उनकी मुठभेड़ असभ्य और जंगली जातियांसे हुई। जब ऋग्वेदमें गौरवर्ण आये और श्यामवर्ण दस्युओंके विरोधका वर्णन मिलता है तो अथर्ववेदमें आदान-प्रदानके द्वारा दोनोंके मिलकर रहनेका उल्लेख मिलता है। इस समझौतेका यह फल होता है कि अथर्ववेद जादू टोनेका ग्रन्थ बन जाता है। जब हम ऋग्वेद और अथर्ववेदसे मजुर्वेद, सामवेद और ब्राह्मणोंकी ओर आते हैं तो हम एक विलक्षण परिवर्तन पाते हैं। यज्ञ यागादिकका जोर है, ब्राह्मण ग्रन्थ वेदोंके आवश्यक भाग बन गये हैं क्योंकि उनमें यागादिकको विधिका वर्णन है, पुरोहितोंका राज्य है और ऋग्वेदसे ऋचाएँ लेकर उनका उपयोग यज्ञानुष्ठानमें किया जाता है। जब हम ब्राह्मण साहित्यको ओर आते हैं तो हम उस समयमें जा पहुँचते हैं जब वेदोंको ईश्वरीय ज्ञान होनेकी मान्यताको सत्यरूपमें स्वीकार किया जा चुका था। इसका कारण यह था कि वेदका उत्तराधिकार स्मृतिके आधारपर एकसे दूसरको मिलता आता था और आदर भाव बनाये रखनेके १. इंडियन फिलोसोफी (सर एम० राधाकृष्णन्) पृ० ६४, १ भा० । २. इंडियन फिलोसोफी (सर एस. राधाकृष्णन्) पृ० १२६ ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy