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________________ ३६२ जैनधर्म किया है-(१) वैदिक काल-१५०० ई० पू० से ६०० ई० पू० तक (२) पौराणिक गाथा काल-६०० ई० पू० से २०० ई० तक और (३) सूत्रकाल-२०० ई० से आगे। हिन्दू धर्मको सबसे प्राचीन पोथी वेद हैं। बेद चार हैं ऋक, यजु, साम और अथर्व । पौराणिकोंका कहना है कि इन चारों वेदोंका संकलन वेदव्यासने यज्ञकी आवश्यकताओंको दृष्टिमें रखकर किया था। यज्ञानुष्ठानके लिये चार ऋत्विजोंकी आवश्यकता होती है-होना, उग्दाता, अध्वर्यु तथा ब्रह्मा । होता मंत्रोंका उच्चारण करके देवताओंका आह्वान करता है। इस मंत्र समुदायका संकलन ऋक्वेदमें है । उद्गाता ऋचाओंको मधुर स्वरसे गाता है इसके लिये सामवेदका संकलन किया गया है । यज्ञके विविध अनुष्ठानोंका सम्पादन करना अध्वर्युका कर्तव्य है । इसके लिये यजुर्वेद है। ब्रह्मा सम्पूर्ण योगका निरीक्षक होता है, जिससे अनुष्ठानमें कोई त्रुटि न रहे, उसमें विघ्न न आवे। इसके लिये अथर्ववेद है। इस प्रकार यज्ञानुष्ठानको अच्छी तरहसे करनेके लिये भिन्न-भिन्न वेदोंका संकलन भिन्नभिन्न ऋत्विजोंके लिये किया गया है। ___ वेदके तीन विभाग हैं-मंत्र, ब्राह्मण और उपनिषद् । मंत्रोंके समुदायको संहिता कहते हैं। ब्राह्मण ग्रन्थोंमें यज्ञ यागादिके अनुष्ठानका विस्तृत वर्णन है, इन्हें वेदमंत्रोंका व्याख्या ग्रन्थ कहा जाता है। ब्राह्मण ग्रन्थोंका अन्तिम भाग आरण्यक और उपनिषद् हैं, इनमें दार्शनिक तत्त्वोंका विवेचन है। उपनिषदोंको ही वेदान्त कहते हैं। विषय विभागकी दृष्टिसे वेदके दो विभाग हैं-कर्मकाण्ड और ज्ञानकाण्ड | संहिता, ब्राह्मण और आरण्यकोंका अन्तर्भाव कर्मकाण्डमें होता है और उपनिषद्का ज्ञानकाण्डमें; क्योंकि पहलेमें मुख्यतया क्रियाकाण्डकी चर्चा है और दूसरेमें मुख्यतया ज्ञानकी।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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