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________________ ३४८ जैनधर्म तालाबके पर मूर्तियाँ हैं, इनमें आधके लगभग भरता लेख यहाँ ८ मील थूवनजी है। यहाँ २५ मन्दिर पत्थरोंमें उकेरी हुई हैं, खड़े योग हैं ऊँची हैं। ' आवश्यक है कि बुन्देलखण्डके उक्त सभा मत्र दिगम्बर जैन ही हैं। वहाँ श्वेताम्बरोंका निवास न होनेसे उनका एक भी तीर्थक्षेत्र नहीं है। ___अन्तरिक्ष पाश्र्वनाथ-सेन्ट्रल रेलवेके अकोला (बरार) स्टेशनसे लगभग ४० मीलपर शिवपुर नामका गाँव है। गाँवके मध्य धर्मशालाओंके बीच में एक बहुत बड़ा प्राचीन विशाल दुमजला जैन मन्दिर है। नीचेकी मंजिलमें एक श्यामवर्ण २॥ फुट ऊँची पार्श्वनाथजीकी प्राचीन प्रतिमा है जो वेदीमें अधर विराजमान है। सिर्फ दक्षिण घुटना जमीनमें सटा हुआ है। इसीसे यह प्रतिमा अन्तरिक्ष पार्श्वनाथके नामसे प्रसिद्ध है। यहाँ दोनों सम्प्रदायोंके लिये पूजाका समय नियत है। सुबह ६ से ९ और १२ से ३ तक श्वेताम्बर पूजन करते हैं और ९ से १२ तथा ३ से ६ तक दिगम्बर लोग पूजन करते हैं। ___कारंजा-अकोला जिलेमें मूर्तिजापूर स्टेशनसे यवतमालको जानेवाली रेलवे लाईनपर यह एक कसबा है। यहाँपर तीन विशाल प्राचीन जैनमन्दिर हैं । एक मन्दिरमें चाँदी, सोने, होरे, मूंगे और पन्नेकी प्रतिमाएँ हैं। यहाँ दो भट्टारकोंकी गद्दियाँ हैं एक बलात्कारगणकी, दूसरी सेनगणकी। सेनगणके भट्टारकके मन्दिरमें संस्कृत प्राकृतके प्राचीन जैनग्रन्थोंका बहुत बड़ा भंडार है। यहाँ महाबीर ब्रह्मचर्याश्रम नामकी एक आदर्श शिक्षा संस्था भी है। मुक्तागिरि-यह सिद्धक्षेत्र बराड़के एलचपुरसे १२ मीलपर पहाड़ी जंगलमें है। नीचे धर्मशाला है। पासमें ही एक छोटी पहाड़ी है, जिसपर चढ़ने के लिये सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। ऊपर
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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