SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२८ जैनधर्म चाहता था और न स्वामीकी आज्ञाका उल्लंघन करना चाहता था। उसने होरेकी कनी खाकर प्राण त्याग दिये और मरते समय चिल्लाया-महाराजसे कह देना मैंने उनकी आज्ञाका पालन किया। मेरे जीतेजी मरहठे अजमेरमें प्रवेश नहीं कर सकते थे।' जनरल इन्द्रराज जैन ओसवालोंमें इन्द्रराज सबसे बड़े जनरल हुए हैं। इन्होंने बीकानेरके राजाको हराया और जयपुरके राजाका मान भंग किया । सन १८१५ में इनका स्वर्गवास जोधपुरमें हुआ। वस्तुपाल तेजपाल जैन मंत्रियों और सेनापनियों में वस्तुपाल तेजपालका नाम उल्लेखनीय है । ये दोनों भाई राजनीतिक पण्डित, तलवारके धनी, शिल्पकलाके प्रेमी और जैनधर्मक अनन्य भक्त थे। ये पोरवाड़ जैन थे और गुजरातके बघेलवंशी राजा वीरधवलके मंत्री थे। देवगिरिके यादववंशी राजा सिंहनने जब गुजरातपर आक्रमण किया तो इन वीरोंने उससे युद्ध करके विजय प्राप्त की। इसी प्रकार संग्रामसिंहने खम्भातपर हमला किया तो वस्तुपाल वहाँका गवर्नर था। घमासान युद्ध हुआ और संग्रामसिंहको युद्ध क्षेत्रसे भागना पड़ा। सेनापति आभू आभू श्रीमाली जैन राजपूत था। वह पक्का धर्माचरणी था। गुजरातके अन्तिम सोलंकी राजा भीमदेवका सेनाध्यक्ष था । अभी वह इस पदपर नया ही नियुक्त हुआ था और भीमदेव अनुपस्थित थे। ऐसे समयमें मुसलमानोंने राजधानीपर आक्रमण कर दिया। रानीको चिंता हुई किन्तु आभूके उत्साहप्रद वचनोंसे विश्वस्त होकर रानीने युद्धकी घोषणा कर दी और युद्धका भार आभूको सौंप दिया।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy