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________________ जैनधर्म चिह्न बना देता है। तब तक पशुओंसे काम लेना कोई नहीं जानता था और न उसकी कोई आवश्यकता थी। किन्तु अब आवश्यक होनेपर सातवाँ मनु घोड़ोंपर चढ़ना वगैरह सिखाता है। पहले माता पिता सन्तानको जन्म देकर मर जाते थे। किन्तु अब ऐसा होना बन्द हो गया तो आगेके मनु बच्चोंके लालन-पालन आदिका शिक्षण देते हैं। इधर-उधर जानेका काम पड़नेपर रास्तेमें नदियाँ पड़ जाती थों, उन्हें पार करना कोई नहीं जानता था। तब बारहवाँ मनु पुल, नाव वगैरहके द्वारा नदी पार करनेकी शिक्षा देता है। ___पहले कोई अपराध ही नहीं करता था, अतः दण्डव्यवस्थाकी भी आवश्यकता नहीं पड़ती थी। किन्तु जब मनुष्योंकी आवश्यकता पूर्तिमें बाधा पड़ने लगी तो मनुष्योंमें अपराध करनेकी प्रवृत्ति भी शुरू हो गई। अतः दण्डव्यवस्थाकी आवश्यकता हुई। प्रथमके पाँच मनुओंके समयमें केवल 'हा' कह देना ही अपराधीके लिये काफी होता था। वादको जब इतनेसे काम नहीं चला तो 'हा', अब ऐसा काम मत करना' यह दण्ड निर्धारित करना पड़ा। किन्तु जब इतनेसे भी काम नहीं चला तो अन्तके पाँच कुलकरोंके समयमें ‘धिक्कार' पद और जोड़ा गया। इस तरह चौदह मनुओंने मनुष्योंकी कठिनाइयोंको दूर करके सामाजिक व्यवस्थाका सूत्रपात किया। चौदहवें मनुका नाम नाभिराय था। इनके समयमें उत्पन्न होने वाले बच्चोंका नाभिनाल अत्यन्त लम्बा होने लगा तो इन्होंने उसको काटना बतलाया। इसीलिये इसका नाम नाभि पड़ा। इनकी पत्नीका नाम मरुदेवी था। इनसे श्रीऋषभदेवका जन्म. हुआ। यही ऋषभदेव इस युगमें जैनधर्मके आद्य प्रर्वतक हुए। इनके समयमें ही ग्राम नगर आदिको सुव्यवस्था हुई' इन्होंने १. 'पुरगामपट्टणादी लोयियसत्थं च लोयववहारो। धम्मो वि दयामूलो विणिम्मियो आदिबह्मण ॥८०२॥', -त्रि० सा० ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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