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________________ सिद्धान्त होते हैं, जो शब्दकी उत्पत्तिमें कारण तो हैं किन्तु स्वयं शब्दरूप नहीं है और स्कन्धसे जुदा है, उसे परमाणु जानो।' __ ऊपरके इस विवेचनसे परमाणुके सम्बन्धमें अनेक बातें ज्ञात होती हैं। पुद्गलके सबसे छोटे अविभागी अंशको परमाणु कहते हैं । वह परमाणु एकप्रदेशी होता है, इसीलिये उसका दूसरा भाग नहीं हो सकता । उसमें कोई एक रस, कोई एक रूप, कोई एक गंध और शीत-उष्णमेंसे एक तथा स्निग्ध रूक्षमेंसे एक, इस तरह दो स्पर्श होते हैं। यद्यपि परमाणु नित्य है तथापि स्कन्धोंके टूटनेसे उसकी उत्पत्ति होती है । अर्थात् अनेक परमाणुओंका समूहरूप स्कन्ध जब विघटित होता है तो विघटित होते होते उसका अन्त परमाणु रूपोंमें होता है, इस दृष्टिसे परमाणुओंकी भी उत्पत्ति मानी गई है। किन्तु द्रव्यरूपसे तो परमाणु नित्य ही है। ___ अनेक परमाणुओंके बन्धसं जो द्रव्य तैयार होता है, उसे स्कन्ध कहते हैं। दो परमाणुओंके मेलसे द्वयणुक बनता है, तीन परमाणुओंके मेलसे त्र्यणुक तैयार होता है। इसी तरह, संख्यात, असंख्यात और अनन्त परमाणुओंके मेलसे संख्यात प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी और अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तैयार होते हैं। हम जो कुछ देखते हैं वह सब स्कन्ध ही हैं। धूपमें जो कण उड़ते हुए दृष्टिगोचर होते हैं, वे भी स्कन्ध ही हैं। 'यहाँ यह बतला देना अनुचित न होगा कि आधुनिक रसायन शास्त्र (Chemistry ) में जो 'अटोम' माने गये हैं वे जैन परमाणुओंके समकक्ष नहीं हैं। यद्यपि 'अटोम' का मतलब आरम्भमें यही लिया गया था कि जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता । तथापि अब यह प्रमाणित हो गया है कि 'अटोम' प्रोटोन न्यूट्रोन और एलेक्ट्रोनका एक पिण्ड है। परमाणु १ 'Cosmology old and new, By Pro. G. R.Jain.
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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