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________________ अनुमानप्रमाणमीमांसा ३२९ ( ६ ) विरुद्धसहचरोपलब्धि-इस दोवालमें उस तरफके हिस्सेका अभाव नहीं है, क्योंकि इस तरफका हिस्सा देखा जाता है । इन छह उपलब्धियोंमें प्रतिषेध साध्य है और जिसका प्रतिषेध किया जा रहा है उससे विरुद्धके व्याप्य, कार्य, कारण आदिको उपलब्धि विवक्षित है। जैसे विरुद्ध कारणोपलब्धिमें सुखका प्रतिषेध साध्य है, तो सुखका विरोधी दुःख हुआ, उसके कारण हृदयशल्यको हेतु बनाया गया है। प्रतिषेधसाधक सात अविरुद्धानुपलब्धियाँ -- ( १ ) अविरुद्धस्वभावानुपलब्धि-इस भूतलपर घड़ा नहीं है, क्योंकि वह अनुपलब्ध है। यद्यपि यहाँ घटाभावका ज्ञान प्रत्यक्षसे ही हो जाता है, परन्तु जो व्यक्ति अभावव्यवहार नहीं करना चाहते उन्हें अभावव्यवहार करानेमें इसकी सार्थकता है। ( २ ) अविरुद्धव्यापकानुपलब्धि-यहाँ शीशम नहीं है, क्योंकि वृक्ष नहीं पाया जाता। (३ ) अविरुद्ध कार्यानुपलब्धि-यहाँपर अप्रतिबद्ध शाक्तिवाली अग्नि नहीं है, क्योंकि धूम नहीं पाया जाता। यद्यपि साधारणतया कार्याभावसे कारणाभाव नहीं होता, पर ऐसे कारणका अभाव कार्यके अभावसे अवश्य किया जा सकता है जो नियमसे कार्यका उत्पादक होता है। ( ४ ) अविरुद्ध कारणानुपलब्धि-यहां धूम नहीं है, क्योंकि अग्नि नहीं पायो जाती। (५) अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धि-एक मुहूर्तके बाद रोहिणीका उदय नहीं होगा, क्योंकि अभी कृत्तिकाका उदय नहीं हुआ है। १. परीक्षामुख ३१७३-८०।
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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