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________________ अनुमानप्रमाणमीमांसा ३२१ च्याप्ति ) के बलपर गमक नहीं होता। वह तो अन्तर्व्याप्ति ( पक्षमें साध्यसाधनकी व्याप्ति ) से ही सद्धेतु बनता है। जिसका अविनाभाव निश्चित है उसके साध्यमें प्रत्यक्षादि प्रमाणोंसे बाधा ही नहीं आ सकती। फिर बाधित तो साध्य ही नहीं हो सकता; क्योंकि साध्यके लक्षणमे 'अबाधित' पद पड़ा हुआ है। जो बाधित होगा वह साध्याभास होकर अनुमानको आगे बढ़नेही न देगा। इसी तरह जिम हेतुका अपने गाध्यके माय समग अविनाभाव है, उसका तुल्यबलशाली प्रतिपक्षी प्रतिहेतु सम्भव ही नहीं है, जिसके वारण करनेके लिए असत्प्रतिपक्षत्वको हेतुका स्वरूप माना जाग । निश्चित अविनाभाव न होनेसे 'गर्भमें आया हुआ मित्राका पुत्र श्याम होगा, क्योंकि वह मित्राका पुत्र है जैसे कि उमके अन्य श्याम पुत्र' इम अनुमानमें त्रिरूपता होने पर भी मत्यता नहीं है। मित्रापुत्रत्व हेतु गर्भस्थ पुत्रमें है, अतः पक्षधर्मत्व मिल गया, सपक्षभूत अन्य पुत्रोंमे पाया जाता है, अतः मपक्षसत्त्व भी सिद्ध है, विपक्षभत गोरे चैत्रके पुत्रोंसे वह व्यावृत्त है, अतः सामान्यतया विपक्षव्यावृत्ति भी है। मित्रापुत्रके श्यामत्वमें कोई बाधा नहीं है और समान बलवाला कोई प्रतिपक्षी हेतु नहीं है । इस तरह इस मित्रापुत्रत्व हेतुमें त्रैरूप्य और पांचरूप्य होनेपर भी सत्यता नहीं है; क्योंकि मित्रापुत्रत्वका श्यामत्वके साथ कोई अविनाभाव नहीं है। अविना. भाव इसलिए नहीं है कि उसका श्यामत्वके साथ सहभाव या क्रमभाव नियम नहीं है। श्यामत्वका कारण है उसके उत्पादक नामकर्मका उदय और मित्राका गर्भ अवस्थामें हरी पत्रशाक आदिका खाना । अतः जब मित्रापुत्रत्वका श्यामत्वके साथ किसी निमित्तक अविनाभाव नहीं है और विपक्षभूत गौरत्वकी भी वहाँ सम्भावना की जा सकती है, तब वह सच्चा हेतु नहीं हो सकता, परन्तु त्रैरूप्य और पांचरूप्य उसमें अवश्य पाये जाते है। कृत्तिकोदय आदिमें त्रैरूप्य और पांचरूप्य न होने पर भी अविनाभाव होनेके कारण सद्धेतुता है । अतः अविनाभाव ही एक मात्र हेतुका स्वरूप
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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