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________________ जीवद्रव्य - विवेचन १६९ एक ही पुद्गल मौलिक है : आधुनिक विज्ञानने पहले ६२ मौलिक तत्व ( Elements ) खोजे थे । उन्होंने इनके वजन और शक्तिके अंश निश्चित किये थे । मौलिक तत्त्वका अर्थ होता है - 'एक तत्त्वका दूसरे रूप न होना ।' परन्तु अब एक एटम ( Atom ) ही मूल तत्त्व बच गया है । यही एटम अपने में चारों ओर गतिशील इलेक्ट्रोन और प्रोटोनकी संख्या के भेदसे ऑक्सीजन, ताँबा, यूरेनियम, रेडियम आदि अवऑक्सीजनके अमुक इलेक्ट्रोन या प्रोटो । हॉइड्रोजन, चाँदी, सोना, लोहा, स्थाओंको धारण कर लेता है नको तोड़ने या मिलाने पर वही हॉइड्रोजन बन जाता है । इस तरह् ऑक्सीजन और ऑइड्रोजन दो मौलिक न होकर एक तत्त्वकी अवस्थाविशेष ही सिद्ध होते है । मूलतत्त्व केवल अणु ( Atom ) हैं । पृथिवी आदि स्वतन्त्र द्रव्य नहीं : नैयायिक - वैशेषिक पृथ्वी के परमाणुओं में रूप, रस, गन्ध और स्पर्श आदि चारों गुण, जलके परमाणुओंमें रूप, रम और स्पर्श ये तीन गुण, अग्निके परमाणुओं में रूप और स्पर्श ये दो गुण और वायुमे केवल स्पर्श, इस तरह गुणभेद मानकर चारोंको स्वतन्त्र द्रव्य मानते है; किन्तु जब प्रत्यक्ष से सीपमें पड़ा हुआ जल, पार्थिव मोती बन जाता है, पार्थिव लकड़ी अग्नि बन जाती है, अग्नि भस्म वन जाती है, पार्थिव हिम पिघलकर जल हो जाता है और ऑक्सीजन और हाइड्रोजन दोनों वायु मिलकर जल बन जाती है, तब इनमें परस्पर गुणभेदकृत जातिभेद मानकर पृथक् द्रव्यत्व कैसे सिद्ध हो सकता है ? जैनदर्शनने पहलेसे ही समस्त पुद्गलपरमा ओंका परस्पर परिणमन देखकर एक ही पुद्गल द्रव्य स्वीकार किया है यह तो हो सकता है कि अवस्थाविशेषमें कोई गुण प्रकट हों और कोई अप्रकट । अग्निमें रस अप्रकट रह सकता है, वायुमें रूप और जलमें गन्ध, किन्तु उक्त द्रव्योंमें उन गुणोंका अभाव नहीं माना जा सकता । यह एक
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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