SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवद्रव्य-विवेचन १६३ (२) स्थूल (बादर)-जो स्कन्ध छिन्न-भिन्न होनेपर स्वयं आपसमें मिल जाँय, वे स्थूल स्कन्ध है । जैसे कि दूध, घी, तेल, पानी आदि । (३) स्थूल-सूक्ष्म (बादर-सूक्ष्म)-जो स्कन्ध दिखनेमें तो स्थूल हों, लेकिन छेदने-भेदने और ग्रहण करनेमें न आवे, वे छाया, प्रकाश, अन्धकार, चाँदनी आदि स्थूल-सूक्ष्म स्कन्ध है । (४) सूक्ष्म-स्थूल (मूक्ष्म-बादर)-जो सूक्ष्म होकरके भी स्थूल रूपमें दिखें, वे पाँचों इन्द्रियोके विपय-स्पर्श, रस, गन्ध वर्ण और शब्द सूक्ष्म-स्थूल स्कन्ध है। (५) सूक्ष्म-जो सूक्ष्म होनेके कारण इन्द्रियोंके द्वारा ग्रहण न किये जा सकते हों, वे कर्मवर्गणा आदि सूक्ष्म स्कन्ध हैं। (६) अतिसूक्ष्म-कर्मवर्गणासे भी छोटे द्वयणुक स्कन्ध तक सूक्ष्मसूक्ष्म हैं। परमाणु परमातिसूदम है । वह अविभागी है। शब्दका कारण होकर भी स्वयं अशब्द है, शाश्वत होकर भी उत्पाद और व्ययवाला है-यानी त्रयात्मक परिणमन करनेवाला है । स्कन्ध आदि चार भेद : 'पुद्गल द्रव्यके स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणु ये चार विभाग भी होते है । अनन्तानन्त परमाणुओंसे स्कन्ध बनता है, उससे आधा स्कन्धदेश और स्कन्धदेशका आधा स्कन्धप्रदेश होता है। परमाणु सर्वतः अविभागी होता है। इन्द्रियाँ, शरीर, मन, इद्रियोंके विषय और श्वासोच्छ्वास आदि सब कुछ पुद्गल द्रव्यके ही विविध परिणमन है। १. 'खंधा य खंधदेसा खंधपदेसा य हाति परमाणू । इदि ते चदुन्वियप्पा पुग्गलकाया मुणयन्वा ॥' "-पञ्चास्तिकाय गा० ७४-७५ । २. “शरीरवाङ्मनः प्राणापानाः पुद्गलानाम् ।” -तत्वार्थसूत्र ५।१९।
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy