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________________ १६२ जैनदर्शन स्कन्ध कहे जाते है । इन स्कन्धोंका बनाव और विगाड़ परमाणुओं की बंधशक्ति और भेदशक्ति के कारण होता है । प्रत्येक' परमाणुमे स्वभावमे एक रस, एक रूप, एक गन्ध और दो स्पर्श होते हैं । लाल, पीला, नीला, सफेद और काला इन पाँच रूपोमेसे कोई एक रूप परमाणुमे होता है जो बदलता भी रहता है । तीना कट्वा कषायला, खट्टा और मीठा इन पाँच रोमेमे पोर्ट एक रम परमाणुओमे होता है, जो परिवर्तित भी होता रहता है । सुगन्ध और दुर्गन्ध इन दो गन्धोमे से कोई एक गन्ध परमाणुमे अवश्य होती है । गीन और उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष, इन दो युगलो से कोई एक-एक स्पश अर्थात् शीत और उष्णमेसे एक और स्निग्ध तथा क्षमेसे एक, इस तरह दो स्पर्श प्रत्येक परमाणु अवश्य होते हे । वाकी मृदु कर्कश, गुरु और लघु ये चार स्पर्ग स्वन्ध-अवस्थाके है परमाणु अवस्थामै ये नहीं होते । यह एकप्रदेशी होता है । यह स्कन्धो कारण भी है और स्वन्वोके भेदमे । उत्पन्न होने के कारण उनका कार्य भी है। पुद्गली परमाणु- जवस्था स्वाभाविक पर्याय है, और स्कन्ध-अवस्था विभात - पर्याय है । स्कन्धोंके भेद : स्कन्ध परमोपेतहोते (१) अति ( बावरा ) सत्य -भिन्न होनेपर स्वयं न मिलो, वे लकडी पत्र पनि पृथ्वी आदि अतिस्थूलस्थूल है | १. “ एयरसवण्णां दो फार्स सहकारणमसः ।" ―― - पंचातिकाय गा० ८१ । २. “अशृलथूलशूलं धूलं सहमं च गुहुमवलं च सुमं अहमंदति धरादियं होइ छब्मे । ॥” - नियममार गा० २१-२४ ।
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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