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________________ श्री भगवती सूत्र भवति नो दुपच्चकवाय भवति, एवं ग्वल से सुपच्चक्खाई सव्वपाणेहि जात्र सव्वमोहिं पच्चकवायमिति वयमाणे सच्च माम मामड नो सोमं माम मामड, एव खलु से नच्चवादी सव्वपारोहि जाच सव्वमतेहि तिविह तिविहे मजयविरय पडिहयपच्चक्खाय पाचकम्मे किरिए मवुड एगंतपंडि यावि भवति, से ते देणं गोयमा ! एव बुच्चड जाव मिय दुपच्चासाय मवति ॥ ॐ - श्री भगवती सूत्र २' || टीका - `से नूण'मित्यादि, 'सिय सुपचक्याथ सिय दुपच्यवराय' इति प्रतिपाय यत्प्रथम दुष्प्रत्याख्यानत्ववर्णनं कृत तययासंख्यन्यायत्यागेन यथाऽऽसनतान्यायमकृत्येति द्रष्टव्य, atra arataय भवतित्ति 'नो नैव 'ए' इति वच्यमाण प्रारमभिसमन्वागत-वगतं स्थान, 'नो भवति 11 य मव्व नाभावेन परिपालनात् प्रत्याग्यानाभाव पागनिसर्वप्रानिदितानुमतिभेड भिन्न योनमात्यतिविरंग नविन मनोवायलचीन पनजरियाउतर दिया-नेपाल याता च पापानि
SR No.010345
Book TitleJainagamo me Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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