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________________ जैनागमों में स्याद्वाद फासपजवा, अणंता ठाणपज्जवा अणता गरुयलहुयपज्जवा, अणता अगरुयलहुयपज्जवा, नत्थि पुण से अंते ४, से खदगा! दव्यत्रो लोए सअन्ते खेतो लोए सअन्ते कालतो लोए अणते भावों लोए अणते । जेवि य ते खंदया ! जाव सअन्ते जीवे अणंते जीवे, तस्सवि य ण अषमठे --एव खलु जाव दव्यत्रो ण एगे जीवे सअन्ते, खेत्तत्रा ण जीवे असंखेज्जयएसिए असंखेज्जपदेसोगाढे अत्थि पुण से अन्ते,, कालो णं जीवे न कयावि न आमि जाव निच्चे नत्थि पुण से अते, भावो णं जीवे अणता णाणपज्जवा अणता दसणप० अणंता चरितप० अणंता अगुरुलहुयप० नत्थि पुण से अन्ते, सेनं दव्वयो जीवे सअन्ते खेतो जीवे सअन्ते कालो जीवे अणते, भावो जीवे अणते । जेवि य ते खदया ! पुच्छो० (इमेयारूवे चिंतिए जाव सअन्ता सिद्धि अणंता सिद्धी) तस्स वि य ण अयमढे खदया ! मए एवं खलु चउब्विहा सिद्धी पएण०, त०-दव्बो ४, दव्यत्रो ण एगा मिद्धी खेतेश्रो ण सिद्धी पणयाली जोयणसयसहस्साई आयामविक्खभेण एगा जोयणकोडी बायालीस च जोयणसयसहस्साई तीस च जोयण
SR No.010345
Book TitleJainagamo me Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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