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________________ श्री भगवती सत्र मृलम् - खदयाति समण भगवं महावीरे खंदय कच्चाय० एवं वगमी--से नूण तुम खदया ! सारथीए नयरीए पिंगलए ण णियठेणं वेसालियसावरण इणमक्खेव पुच्छिए मागहा। कि सते लोए अणते लोए एव त जेणेव मम अंतिए तेणे व हव्यमागए, से नूणं खंदया । अयमठे समटठे ? हता अत्थि, जेविय ते खंदया । अयमेयारूवे अब्मथिए चिन्तिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था- - कि सते लोए अणते लोए ' तस्सविय णं अयमटठे एवं खलु मए खंदया । चउविहे लोए पन्नत्ते, तंजहा--दव्वो खेत्तो कालो भावओ। दव्यत्रो ण एगे लोए सते ?, खेतो रणं लोए असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीअो आयामविक्खंभेण, असंखेज्जायो जोयणकोडाकोडीनो परिक्खेवेण प० अत्थि पुण मअन्ते?, कालो ण ले ए ण कयावि न ग्रामी न कयावि न भवति न कयावि न भविसति मुविसु य भवति य मविस्सड य धुवे णितिए सासते अक्खए अव्वए अवटिए णिच्चे. णत्थि पुण से अन्ते ३, भावप्रो ण लोए अणता वएण पज्जवा गध० रम०
SR No.010345
Book TitleJainagamo me Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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