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________________ श्री ठागांग सूत्र सवेदका --स्त्रीवेदाा दयवन्न . अवेदका सिट्टाढय सहम्पण - मूर्त्या वर्तन्त इति ममामान्ते इन्प्रत्यये मति मा.पिरण सम्धानवर्णादिमन्तः मशरीरा इत्ययं न पिणो अरूपिणी-मुना मपुद्गला कर्मादिपुर लवन्तो जीवा ययुगला -मिट्ठा समार भवं समापन्नका ---याश्रिता सपारसमापन्नका -ससारिण , तदितरे मिट्ठा शाश्वता -मिट्ठा जन्ममरणादिरहितत्वान, अशाश्वता --ससारिणस्ता तत्वादिति ॥ एव जीवतत्त्वम्य द्विपदावतार निम्प्याजवतत्त्वस्य ते निरुपयन्नाहमनम् - योगामा चेव, नो अगासा चेत्र । धम्मे चेव अधम्मे चेव ॥ (सूत्र ५८) बधे चेव. मोक्खे चेव १ पुन्ने चव पापे चर ॥२॥ पासवें चेव मवरे चेव ॥३॥ चे यणा चेव निजरा चेव ।। ४ ।। (मत्र ५६) ~श्री धानाइ मृतधान : ॥ टीका-प्राकाश व्योम नोग्राफाश-नदन्य द्वाग्निवायादि, धर्म - धर्मास्तिकायो गत्युपष्ट भगुण तदन्योऽधर्म-अधाग्नि. काय स्थिन्युपष्टम्भरण । मविपक्षर धादिनन्य मृगाणि चारि प्रायदिति । मूलम् -मत्त मलनया ५० त०-नेगमे मगहे पहारे उज्जुमुते मरद, ममभिदं एवंभूने । --भीमानाग नाचान , दश: । ।
SR No.010345
Book TitleJainagamo me Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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