________________
श्री जम्बूद्दीप परणत्ति सूत्र
मूलप्-'तीसे णं जगईए उप्पि बहुमज्झदेस भाए एत्थ णं
महई एगा परमवरवेझ्या पगणतो, श्रद्धजोयण उड्ढं उच्चनेणं पच धनुसयाइ विक्खंभेण जगई समिया परिवखेवेण सवरयणामई अच्छा जाव पडिरूवा। तीसे णं परमवरवेइयाए अयमेवारूवे वएणावासे पण्णरो, तंजहा-वइरामयाणेमा एवं जहा जीवाभिगामे जाय अहो जाव धुवा णियया सासया जाव णिचा ||
-श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञाप्ति सूत्र वक्षस्कार १२ सू० ४ ॥ टीका-पनवरवेदिकायाः शाश्वत नामधेयं प्रज्ञप्तमिति, श्रयमपिप्राय प्रस्तुतपुद्गलप्रचयविशेपे पद्मवरवेदिकेति शब्दम्य तिमनि निरपेक्षाऽनाद कालिना रूढि प्रवृत्तिनिमिर्तामति, पउम