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________________ श्री भगवती सत्र नत्र त्रय सकनोदशा तथैव शेषेषु चतुर्षु प्रत्येक चत्वारो विकल्पा ने चै चतुर्थादिषु , 707 त्रिपु - | wind 2976 सप्तमस्त्वम् 97% ११५ 636 पञ्चप्रदेशिकेतु द्वाविशतिस्तत्राद्यास्त्रयस्तथैव तदुत्तरेषु च त्रिपु चेक चत्वारो विकल्पान्तथैव, सप्तमे तु सम त्रिकसयोगे किलाप्र भगका भवन्ति तेषु च सप्तैवेह या एकस्तु तेषु न पतत्यइदमेवाह - 'निगमंजोगे 'न्यादि तपा सम्भवात... स्थापना १२२ २१५ cle a २२१ a λ यच न पतति स पुनरयम २०० पट प्रदेशिये त्रयोविशनिरिति ॥ 1 मृलम् - परमाणुपग्गले शां मंते । किं सासर सामए गोयमा सिय नामए मिय यमानए, से केण द भते । च च सिय सामए सिय मान गोवमा ! चट्टयाए नामए वन्नपज्जवं हि जाव फानपज्जव हि समान से गाईशी जाव निय नए नियम ( योगले भने । नमेसन मे " ५१२ ) || परमाणुगोवमा ।
SR No.010345
Book TitleJainagamo me Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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