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________________ १६ ] ( ४ ) सद्धा परम दुल्लहा उ०, ३, ९ टीका - यदि सौभाग्य से ज्ञान - दर्शन - चारित्र रूप मोक्ष मार्ग की वाते सुनने का मौका मिल जाय, तो भी उनपर श्रद्धा आना आत्म विश्वास का पैदा होना अत्यन्त कठिन है | दुर्लभ है ! 1 (५) णो सुलभ वोहिं च माहियं । सू०, २,१९,उ, ३ ! I [ दुर्लभाग- शिक्षा-सूत्र टीका – सम्यक् ज्ञान और सम्यक दर्शन मिलना अत्यन्त कठिन है । अनेक जन्मो में सचित पुण्य के उदय से ही ज्ञान' और ' दर्शन की प्राप्ति होती है । इसलिए जीवन को प्रमादमय नही बनाकर पर-सेवामय ही बनाना चाहिए । (६०). " संवोही, खलु दुलहा सू०, २, - १, उ, 8 2 टीका - सम्यक ज्ञान, सम्यक् दर्शन की प्राप्ति होना अत्यन्त कठिन है । आत्मा मे कषायो की शाति होने पर और पुण्य के उदय - होने पर ही सम्यक् ज्ञान और सम्यक् दर्शन की प्राप्ति होती है । इसलिये जीवन मे प्रमाद को स्थान नही देना चाहिये । ܚܐ दुलहया कारण फांसया । उ०, १०, २० 15 I - टीका श्रेष्ठ धर्म का अहिंसा प्रधान धर्म का और स्याद्वाद प्रधान सिद्धान्त का काया द्वारी आचरण किया जाना तो अत्यन्त C
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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