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________________ सूक्ति-सुधा] (७), निव्वाणवादी णिह णायपुत्ते । सू०, ६, २१ टीका--निर्वाण वादियो में यानी विश्व के धर्म-प्रवर्तकों में ज्ञातपुत्र भगवान महावीर स्वामी ही सर्व श्रेष्ठ है। '. (८) इसीण सेठे तह वद्धमाणे। ' __.. सू०, ६, २२ टीका-ऋपियों मे, विश्व के सभी सतो में श्री वर्धमान महावीर स्वामी ही सर्वोत्तम है, प्रधान है। . जयइ गुरू-लोगाणं, जयइ महप्पा महावीरो। न०,२ ___टीका-जो सम्पूर्ण लोक के गुरु है, जो सारे संसार को ज्ञान का दान देने वाले है, जो सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र में सर्वो-' त्तम होने से महात्मा है, ऐसे श्री वीर-प्रभु महावीर स्वामी को जय हो। (१०)' जयइ सुआणं पभवो, तित्थयराणं अपच्छिमो जयह। - न०, २ टीका-जिन देवाधिदेव पूज्य भगवान के मुख-कमल से श्रुत ज्ञान की धारा बही है; जो सभी तीर्थंकरो-में अंतिम तीर्थकर है, ऐसे ज्ञातपुत्र निर्ग्रन्थ प्रभु वर्धमान-महावीर स्वामी की जय हो-विजय हो।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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