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________________ २] [प्रार्थना-मङ्गल-सूत्र सन्ती सन्तिकरो लोए । उ०, १८, ३८ टीका-भगवान शान्तिनाथजी इस ससार में महान् शान्ति के __ करने वाले है । द्रव्य-शाति और भाव-शाति, दोनो प्रकार की शाति को फैलाने वाले है । आप मे यथा नाम तथा गुण है । (४) नमो ते संसयातीत। उ०, २३, ८५ टीका-हे सशयातीत हे निर्मल ज्ञान वाले ! हे पूर्ण यथाख्यात चारित्र वाले । हे अप्रतिपाती दर्शन वाले ! हे अनन्त गुणशील महात्मन् | तुम्हे नमस्कार है । अनन्तशः प्रणाम है । लोगुत्तमे समणे नायपुत्त। सू०, ६, २३ टीका-लोक में सर्वोत्तम महापुरुष केवल महावीर स्वामी ही है । क्योकि इनका ज्ञान, दर्शन, शील, शक्ति, तपस्या, अनासक्ति, चारित्र, निष्परिग्रहीत्व, अकपायत्व और आत्मबल असाधारण एवं आदर्श था। अभयं करे वीरे अणंतचक्खू। सू०, ६, २५ · टीका- भगवान महावीर स्वामी प्राणियो को अभयदान देनेवाले, कल्याण का मार्ग बताने वाले, अनन्त ज्ञानी और निर्भय थे। वे महापुरुप थे । उनका आत्मवल, तपोवल, चारित्र बल और कर्मण्यता चल भादर्श तथा महान् था।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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