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________________ २८२ ] ( ३७ ) खंति सूरा अरहंता, तवसुरा अणगारा, दाण सूरे वेसमणे, जुद्धसरे वासुदेवे । ठाणां०, ४था, ठा, उ, ३, ७ टीका -- क्षमा-शूरो मे सर्वोत्तम क्षमा-शूर अरिहंत हैं । तपशूरों में असाधारण तप-शूर अणगार - साधु होते हैं । दानियों में दान - शूर वैश्रमण है और युद्ध मे शूर-वीर वासुदेव हैं । ( ३८ ) चत्तारि बिकहाओ परणत्ताओ, इत्यिकहा, भत्त कहा, देख कहा, राय कहा । t ठाणा०, ४था, ठा, उ २, ६ टीका - चार प्रकार की विकथाऐ कही गई है : -- १ स्त्री कथा, २ भोजन कथा, ३ देश - कथा और ४ राज कथा । [ प्रकीर्णक-सूत्र - ( ३९ ) चत्तारि झाणा, अहे झोण, रोदे झाणे, धम्मे, भाणे, सुक्के झाो । ठाणां०, ४था, ठा, उ, ११५ टीका - ध्यान चार प्रकार के कहे गये है : - आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान । ( ४० ) चडविहे वत्रे, गज्जे, पज्जे, कत्थे, गेये । ठाणा०, ४था, ठा, उ, ४, ४३ टीका- -चार प्रकार का काव्य कहा गया है ३ कथा, और ४ गेय । -१ गद्य, २ पद्य,
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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