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________________ सूक्ति-सुधा] [२७७ टीका-सपूर्ण लोक मे-सपूर्ण ब्रह्माड मे, सभी जीवों का संवि. भाजन केवल ६ अवस्थाओ मे या ६ काया मे किया गया है। इसमें सभी जीवों का समावेश हो जाता है । वे छ. काय इस प्रकार हैं१ पृथ्वीकाय, २ अपकाय, ३ तेजसकाय, ४ वायुकाय, ५ वनस्पतिकाय और ६ त्रसकाय । ( २५ ) . दुविहा पोग्गला, सुहमा चेव वायरा चेव । ठाणा, २ रा, ठा, उ, ३, ३ टीका--पुद्गल दो प्रकार के कहे गये है--१ सूक्ष्म और २ वादर। पुद्गल यानी जड़ और रूपी द्रव्य, जिनमें रूप,रस, गध और स्पर्श पाया जाता है, ऐसे जड़ द्रव्य पुद्गल कहे जाते है । जो आखो से दिखाई देते हैं, वे तो बादर पुद्गल हैं, और जो नहीं दिखाई देते है, वे सूक्ष्म पुद्गल है। ( २६ ) दुविहे आगासे, लोगागासे चेव, अलोगागासे चेव । ठाणा०, २रा, ठा, उ, १, २८ टीका-आकाश दो प्रकार का कहा गया है ---१ लोकाकाश और २ अलोकाकाश। सभी द्रव्यो को स्थान देने वाला-अवकाश देने वाला द्रव्यआकाश है। जहाँ तक-जिस परिधि तक छ: ही द्रव्य पाये जाते है, वहाँ तक तो लोकाकाश समझा जाता है, और उससे आगे पाच ही द्रव्यो का अभाव है, इसलिये वह अलोकाकाश कहलाता है । अलोकाकाश की कोई सीमाएं नहीं है। वह तो अनंतानन्त,
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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