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________________ सूक्ति-सुधा [२१७ उविच्च भोगा पुरिसं चयन्ति, दुमं जहा खीण फलं व पक्खी। उ०, १३, ३१ टीका-जैसे पक्षी फल हीन वृक्ष को छोड़ कर चले जाते है, वैसे ही काम-भोग भी पुरुप को क्षीण करके छोड देते है, यानी काम-भोगो से पुरुप क्षीण होकर, अशक्त होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते है। (१२) भोगा इमे संग करा हवति । उ०, १३, २७ टीका--ये काम भोग ही, इन्द्रिय-पोषण की प्रवृत्तियाँ ही, दुख देने वाले कर्मों का अर्थात् अनन्त जन्म मरण कराने वाले कर्मों का घोर वधन कराने वाली होती है । खाणी आणत्थाण उ काम भोगा। टीका--काम-भोग और इन्द्रिय-विषय-विकार, अनर्थों की खान है। ये अनन्त विपत्ति और घोर पतन को लाने वाले है। (१४ । कामे संसार वढणे, संकमाणो तणुं चरे। उ०, १४, ४७ टीका-काम-भोग अर्थात् मूर्छा और विकार वासना, इन्द्रियभोगो की आसक्ति ससार के दुखो को वढाने वाली है। भोगो से कदापि तृप्ति होने की नही है । ऐसा समझ कर यत्न पूर्वक इन से दूर होकर विचरण करे, अपना जीवन व्यतीत करे।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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