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________________ सूक्ति-सुधा [१,२७ टीका-यह जीवन सस्कार-रहित है, यानी दुर्गुणों और विकारों की खान है । अनन्त कालीन वासनाऐ इसं आत्मा मे सन्निहित है; इसलिये प्रमाद मत करो सदंव सत्कार्यों और सयम मे लगे रहो । : -, (२६ ): . . : - पिहिया सवस्स दंतस्स, . . पाव कम्मं न, बंधा। __ - द०, ४,९ टीका-जिसने आस्रव कर्म के आने के द्वार वध कर दिये है, और जो इन्द्रियो और मन को वश में रखने वाला है, वह - पाप कर्म का बन्धन नही करता ह .-..- - - - ... --... (२७ ) , --- ------ संकट्ठाणं विवज्जए। द.०, ५, १५ उ, प्र - टीका-जहां किसी प्रकार की आपत्ति अथवा पाप की आशंका हो, तो ऐंसे शका-ग्रस्त स्थान से दूर ही रहना चाहिए । वहाँ से हट जाना चाहिये। . . .: संसत पलोइज्जा। द०, ५, २३, उ, प्र, टीका- अनासक्त होकर देखना चाहिये, यानी जीवन मे भोग'परिभोग वाले पदार्थों के प्रति मोह, आसक्ति और लोलपता नहीं रखनी चाहिये। 1 - ~~* - मिहो कहाहि न रमे। - - - - - : द.८, ४२ . . . . . ... - - टीका-एकान्त में; व्यर्थ वातो में समय नष्ट नही करना चाहिए, क्योकि व्यर्थ की बातें निन्दा रूप और पाप जनक ही होती है। :
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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