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________________ -१२६ ] 1 ( २२ ) काले काले समायरे । द०, ५, ४, उ, द्वि कि टीका - काल के अनुसार समय को देखकर यथासमय था कार्य करे । प्रत्येक को अपना कार्यक्रम व्यवस्थित विभाजित करते -हुए समय पर उसे करना चाहिये । प्रमाद मे समय नही खोना चाहिये | ( २३ ) जरा जाव न पीडेड़, ताव धम्मं समायरे । 101 ८०, ८, २३ ( २४ ), जाव इंदिआ न हायंति ताव- धम्मं समायरे । [ उपदेश- सूत्र * f टीका — जब तक वृद्धावस्था दुःख नही दे, वृद्धावस्था की प्राप्ति नही हो, उसके पहले ही धर्म का आचरण कर ले, नही तो पीछे 'पछताना पड़ेगा । 2 ( २५ ) प्रसंखय जीविय मा पमायए । उ०, ४, १ · LIV द०, ८, ३६ टीका - जब तक इन्द्रियाँ शक्ति हीन न हों, वहाँ तक यानी इसके पहले ही धर्म का आचारण कर ले । ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और सेवा का आचरण कर ले | अन्यथा पूर्व पुण्यो को यहाँ पर क्षय कर और नये पापो का वोझा सग्रह कर जाना पड़ेगा । S
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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