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________________ सूक्ति-सुधा ] [8092 टीका - जो बुद्धिमान् होता है, जो ज्ञान-शील होता है, वही : धर्म के मर्म को धर्म के रहस्य को जान सकता है । तत्वो के और 2 सिद्धान्तो के तह में उच्च ज्ञानी ही प्रवेश कर सकते है - अज्ञानी और भोगी नही । ( १६ ) सिक्खं सिक्खेज्ज पंडिए । सू०, ८, १५ टीका - पडित पुरुष - ज्ञानी पुरुष - सलेखना रूप शिक्षा को ग्रहण करे । आलोचना के साथ पश्चात्ताप और प्रायश्चित द्वारा जीवन की शुद्धि करे । और पुनः वैसी भूल नही करने की प्रतिज्ञा के साथ जीवन-काल व्यतीत करे। सू०, ३, २०, उ, ४ टीका – सब स्थानों पर, सब काल में विरति करना चाहिये,. · - आदि से विरक्त रहना ( १७ ) सव्वत्थ विरति कुज्जा । 14 यानी पाप, अशुभ योग, कषाय, वासना चाहिये । t 1 -} (१८ ) ... न कंखे व संथवं 1 5 उ', ६, ४. टीका- आत्मार्थी अपने जीवन के पूर्व भाग मे भोगे हुए भोगों का न तो परिचय करे, न उनकी स्मृति करे और न आकाक्षा ही. करे । उनको सर्वथा ही भूल जाये । t t-t ( १९ ) समुप्पेहमाणेस्स इक्काययणरयस्स, इह विप्पमुक्कस नत्थिं मग्गेविरयस्स । - : आ०, ५, १४९, उ, २ 2 "T
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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