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________________ सूक्ति-सुधा ] [ ९१ संसारी और भोगी आत्मा का जीवन भी अचानक टूट जाता है । अनन्त काल चक्र के सामने प्रत्येक ससारी आत्मा का एक गति विशेष में कितना लम्बा आयुष्य होता है ? छोटा सा होता है, अतएव समय और " शक्ति का सदुपयोग ही करते रहना चाहिये । यही बुद्धिमानी का लक्षण है । (७) - : णय संखय मोहु जीवितं, तह विथ बाल जणो पगभई । सू०, २, १०, उ, ३ टीका - टूटी हुई आयु पुन जोड़ी नही जा सकती है | व्यतीत हुआ जीवन पुन. प्राप्त नही किया जा सकता है । फिर भी मूर्ख मनुष्य, विवेक हीन पुरुष, कामान्ध प्राणी पाप करने की धृष्टता करते ही रहते है । वे स्वार्थ साधना और इन्द्रिय-पोषण में ही मग्न रहते है । ( ८ ) तरुण ए वाससयस्स तुट्टती इन्तरवासे, वुज्झह ! य सू०, २, ८, उ, ३ टीका -- सौ वर्ष की आयुवाले पुरुष का भी जीवन युवावस्था में ही नष्ट होता हुआ देखा जाता है । इस लिये इस जीवन को थोड़े दिन के निवास के समान समझो और क्षण भर का भी प्रमाद मत " करो, तथा सदैव सत्कार्यों में ही लगे रहो ।.... 1 =-=(९) ८ - जह वंधण - चुए ताले एवं श्राखयमि तुट्टती । २, ६, उ, १
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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