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________________ फैला। अभ्यासियो की इसके प्रति निरन्तर सद्भावना रही है। स्तोको को कठस्थ करना, अनुवृत करना, स्मरण करना, प्रश्नोत्तर रूप में पूछा करना थोकड़ा प्रेमियो की परम्परा रही है। __ मेरे गुरु भ्राता तपस्वी मेघराजजी महाराज "जैन सिद्धान्त प्रभाकर" की सतत् प्रेरणा रही है कि जैनागम स्तोक संग्रह का सुन्दर-सशोधित एवं परिवद्धित रूप थोकड़ा प्रेमियों के सामने आये, जिससे उन्हे अभ्यास मे अनुराग जागे। आप स्वयं भी थोकडा के अभ्यासी है। उन्ही की प्रेरणा का यह फल है। ये स्तोक प्राय श्री भगवति, उत्तराध्ययन, पनवणा, समवायांग ठाणांग, आदि आगमों से संग्रह किये गये है । दर्शन अभ्यासियों को, आगम प्रेमियो को यह संग्रह रुचिकर लगे और समाज में स्तोकों (थोकडो) का अभ्यास बढ़े। अध्यात्मिक प्रेमियो की ज्ञान वृद्धि हो और वे मोक्ष मार्ग के प्रति अभिमुख हों। इसी पवित्र भावना से के० जी० एफ० वीर निर्वाण २४६६ -अशोक मुनि "साहित्यरत्न"
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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