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________________ ( ४७ ) हम भी करते हैं और कहते हैं कि जिस तरह घास, खेत में अनाज के साथ आप ही उत्पन्न हो जाती है और कभी अनाज के न होने पर भी उत्पन्न होती है, तथा कभी केवल घास हो उत्पन्न की (बोई ) जाती है, उसी तरह पुण्य कभी निर्जरा के साथ भी त्पन्न होता है, कभी निर्जरा के बिना भी उत्पन्न होता है, और कभी केवळ पुण्य ही उत्पन्न किया जाता है। जिस प्रकार आवश्यकतानुसार घास भी उपादेय माना जाता है, उसी प्रकार आवश्यकतानुसार पुण्य भी पादेय है। जिस प्रकार आवश्यकता पूरी हो जाने पर घास फेंक दी जाती है, उसी प्रकार आवश्यकता पूरी हो जाने पर पुण्य भी त्याग दिया जाता है । परन्तु जिस प्रकार आवश्यकता होने पर घास भी उगाई जाती है, घास की भी रक्षा की जाती है, उसी प्रकार आवश्यकता के लिए पुण्य भी उत्पन्न किया जाता है, और पुण्य की भी रक्षा की जाती है। . जिन लोगों के पास पशु अधिक होते हैं, वे 'अनाज के उत्पादन की अपेक्षा पास के उत्पादन का अधिक प्रयत्न करते हैं। बल्कि कभी कभी तो बोये हुए अनाज का उपयोग भी घास के बदले करते हैं। उसी प्रकार जो लोग संसार व्यवहार में है, वे भी निर्जरा करने की अपेक्षा पुण्य का अधिक उत्पादन कर सकते हैं, और करते भी हैं। वही पुण्य लागे कभी निर्जरा करने में
SR No.010339
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1942
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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