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________________ य (१४८ ) से रेल द्वारा दिन के १० बजे पड़िहारा पहुंचे। वैसे पड़िहारा जाने का कोई कारण नहीं था-पर चूंकि तेरापन्थी सम्प्रदाय के आचार्य श्री तुलसारामजी, जिनको आम तौर से 'पूज्यजी' कहा जाता है, उस समय पड़िहारा में थे, इसलिए उनसे भेंट करने की इच्छा हमें वहाँ लेगई। पड़िहारा स्टेशन पर ट्रेन से उतरते ही हमें 'पूज्यजी' के दर्शन के लिए आने जाने वाले यात्रियों की चहल पहल दिखाई दी। स्टेशन से बाहर ही एक लारी खड़ी थी, जो पूज्यजी के दर्शन के लिए आने वाले यात्रियों को स्टेशन से गाँव में लेजाने और वहाँ से वापस लाने के लिए हर ट्रेन टाइम पर स्टेशन पर आया जाया करती थी। इसी लारी में बैठ कर हम गाँव में उस स्थान पर पहुँचे, जहाँ 'पूज्यजी' बिराजे हुए थे। जिस समय. हम महाराज के पास गये, उस समय वे 'आहार' के लिए जाने वाले थे, इसलिए साधारण परिचयात्मक बात-चीत के बाद हम भी उस समय वापस आगये । आहार के बाद तथा और कोई धार्मिक क्रिया थी तो उसके बाद हम उनसे मिले। पूज्यजी के पास एक तरफ साधु साध्वी बैठे थे और दूसरी तरफ दर्शनार्थी श्रावकगण। तब से लगाकर शाम के ३॥-४ बजे तक का अपना बहुत सा समय पूज्यजी ने मेरे साथ बात-चीत करने में दिया, इसके लिए मैं यहाँ उनका आभार स्वीकार करनअपना फर्ज समझता हूँ। ... . ... ..
SR No.010339
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1942
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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