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________________ ( १३२ ) चोर है, और यह धन है। यह चोर धन चुरा कर जा रहा था, लेकिन हमने इसको चोरी के त्याग का उपदेश दिया, इसलिए इसने धन त्याग कर चोरी करने का सदा के लिए त्याग कर लिया है। यह सुनकर उस मकान और धन के मालिक ने महात्मा से कहा कि आपने मेरा धन बचाकर बड़ी कृपा की। यदि यह धन चला जाता, तो मैं लड़के का विवाह केसे करता, मकान कैसे बनवाता और अन्य काम कैसे करता। ४. 'अब सोचने की बात यह है, कि साधु ने चोर को चोरी के पाप से बचाने के लिए उपदेश दिया, या धन बचाने के लिए। यदि धन बचाने के लिए साधु ने उपदेश दिया हो तो उस धन द्वारा होने वाले समस्त कामों में साधु का अनुमोदन होगा। उस धन के द्वारा होने वाले कामों का पाप साधु को भी लगेगा। इसलिए यहो मानना होगा कि साधु ने धन रक्षा के लिए उपदेश नहीं :दिया, किन्तु चोर को चोरी के पाप से बचाने के लिये उपदेश दिया। . यही बात मारने वाले और मारे जाने वाले के लिए भी समझो। एक आदमी एक बकरे को मार रहा है। उस मारने वाले को पाप से बचाने के लिए साधु, उपदेश देते हैं, परन्तु बकरे को बचाने के लिए नहीं देते। यदि बकरे को बचाने के लिए साधुः उपदेश देते हैं, तो फिर ऐसा भी मानना होगा कि धन
SR No.010339
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1942
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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