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________________ ( १३१ ) उदाहरण में कही हुई श्राविकाओं के लिए इस सिद्धान्त का उपयोग क्यों न होगा ? और यदि दोनों श्राविकाएँ बरावर नहीं है। तो धन देकर जीव छुड़ाना और व्यभिचार करके जीव छुड़ाना, समान कैसे हो जावेगा १ जीव बचाने के लिए न सही, अन्य कामों के लिए धन तो देना ही पड़ता है। क्या धन देना और बमिधार करना समान हैं ? (२) जीव रक्षा में पाप बताने के लिए तेरह-पन्थी एक और युक्ति देते हैं। इस युक्ति को समझाने के लिए वे चित्र मादि से भी काम लेते हैं। हम पहिले उनकी सारी युक्ति बता देते हैं, उसका जवाब फिर देंगे। . तेरह-पन्थी कहते हैं कि-'एक मकान के बाहर साधु ठहरे हुए थे। रात के समय मकान में एक चोर चोरी करने के लिए आया, और घर में से धन चुराकर बाहर निकला। साधु ने चोर को धन चुरा ले जाते देखकर सोचा कि मकान में चोरी हो जाने से हमारी बदनामी होगी। ऐसा सोच कर साधु ने चोर को चोरो त्यागने का उपदेश दिया। परिणामतः चोर ने वह धन वहीं डाल दिया, और चोरी करने का त्याग लेकर वहीं बैठ गया। . सधेरे मकान और धन का मालिक आया। उसने अपने घर का वाला टूटा हुआ देखकर महात्मा से पूछा। महात्मा ने कहा कि यह
SR No.010339
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1942
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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