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________________ ( ९६ ) मैं वाणिज्य ग्राम में बहुतों के लिए, राजादि के लिए तथा कुटुम्ब के लिए आधार होकर रहता था, उसी तरह तुम भी सब के लिए आधार होकर रहना । "9 आनन्द श्रावक के लिए जो पाठ ऊपर दिया गया है, उसको सूत्र में पूर्ण सेठ का उदाहरण देकर संक्षिप्त कर दिया है। इस पाठ से स्पष्ट है कि आनन्द श्रावक ने धर्म जागरण करते हुए खानपानादि की सामग्री बनवा कर ज्ञाति के लोग और मित्रादि को भोजन कराने का संकल्प किया था । उस संकल्प के अनुसार आनन्द श्रावक ने सवेरे बहुतसो खान-पान आदि की सामग्री बनवाई, तथा मित्र ज्ञाति और नगर के लोगों को भोजन कराकर उनको पुष्प - वस्त्रादि अर्पण कर उनका सत्कार सम्मान भी किया। : अभि के पाठ से इस पाठ का मिलान करने से स्पष्ट है कि आनन्द श्रावका का अभिप्रह साधु के सिवाय सबके लिए नहीं था, किन्तु केवल अन्य तीर्थी साधुओं के लिए ही था, और वह भी गुरु बुद्धि पूर्वक दान देने तथा सत्कार सम्मान करने के लिए । यदि आनन्द का अभिप्रह सभी के लिए होता, तो श्रानन्द मित्र, ज्ञातिं भौर नगर के लोगों के लिए भोजनादि बनवा कर उनको जिमाता क्यों, उनका सत्कार सम्मान क्यों करता, तथा उन्हें वखपुष्पादि क्यों देता ?
SR No.010339
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1942
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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